Prashn 2

(ख) निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए -
1.         नत शिर होकर सुख के दिन में
            तव मुख पहचानूँ छिनछिन में।
2.         उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
            तो भी मन में ना मानूँ क्षय।
3.         तरने की हो शक्ति अनामय
            मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।

1.    इस काव्यांश का भाव यह है कि कवि यहाँ सुख के दिनों में भी प्रभु का स्मरण बनाए रखना चाहता है जबकि कुछ लोग केवल दुख के क्षण में ही प्रभु का स्मरण करते हैं।
2.    कवि लाभ-हानि की परवाह नहीं करना चाहता। संसार से भले ही उसे धोखा मिले फिर भी वह अपने मन कि दृढ़ता को कम नहीं होने देना चाहता। वह मन मे क्षय की भावना नहीं लाएगा चाहे उसे हानि उठानी पड़े या मुसीबतों का सामना करना पड़े। 
3.    कवि जीवन भार को हल्का करने की प्रार्थना ईश्वर से नहीं करताबल्कि वह तो भव-सागर में तैरने की शक्ति चाहता है और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता है। तभी वह जीवन भार को वहाँ कर पाएगा।  


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