Koi Gam Nahin
कोई गम नहीं
उम्र ने छीन लिया
बचपन मेरा, कोई गम नहीं,
उम्र की ये हैसियत
नहीं कि मुझसे मेरा बचपना छीन सके।
ज़िंदगी में आए हैं गम तो मेरे भी बहुत ही,
पर गम की क्या बिसात कि मुझसे मेरी हँसी छीन सके।
यूँ तो धोखे भी
मिले हैं मुझे कितने ही दर से,
पर धोखे की क्या
औकात कि मुझसे मेरा अदब छीन सके ।
दुनियावालों ने सिखाए हैं मुझे सबक संजीदगी से,
उस सबक की क्या मज़ाल जो मुझसे सच्चाई का सबब छीन सके ।
दीनदारों ने हर
दिन बाँधा है दीन को,
उनकी ये ज़ुर्रत नहीं
कि मुझसे मज़हबे मोहब्बत छीन सके।
खुद ही को मान बैठे है ख़ुदा कुछ लोग,
उनकी रहमत में वो दम नहीं कि ऊपरवाले से मेरा यकीन छीन सके ।
अविनाश
रंजन गुप्ता
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